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धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस एक प्रमुख बौद्ध पर्व है, जो हर वर्ष मनाया जाता है। यह दिन उस ऐतिहासिक क्षण की स्मृति है जब १९५६ में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ नागपुर स्थित दीक्षाभूमि में बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
यह पर्व सम्राट अशोक महान की विजयादशमी से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि कलिंग युद्ध के बाद उन्होंने भी बौद्ध धर्म को अपनाया था। इस दिन बौद्ध अनुयायी जीवन में समानता, न्याय, करुणा और नैतिक मूल्यों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।
धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस का महत्व
- ऐतिहासिक स्मृति का प्रतीक – यह दिन १९५६ के उस सामूहिक धर्मांतरण की याद दिलाता है जब डॉ. अंबेडकर ने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अंगीकार किया।
- डॉ. अंबेडकर की विरासत – यह दिन बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने और उसे भारत में पुनः स्थापित करने के महान कार्य का सम्मान करता है।
- सामूहिक बौद्ध दीक्षा – इस अवसर पर लाखों लोग नागपुर की दीक्षाभूमि में एकत्र होकर बौद्ध धर्म स्वीकार करते हैं।
- नैतिक मूल्यों का संकल्प – अनुयायी इस दिन करुणा, समानता, बंधुत्व और न्याय जैसे बौद्ध सिद्धांतों को अपने जीवन में धारण करने का प्रण लेते हैं।
“धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के शुभ अवसर पर, आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!”