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फूलनदेवी, भारतीय इतिहास की एक सच्ची कहानी।

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फूलन देवी कहती  “कानून मेरी मुट्ठी में”, फूलन देवी का नाम आते ही शरीर के रोएं फूट पड़ते हैं। एक अजीब तरह का अहसास होता है , फूलन देवी के बीहड़ के कारनामों की तूती बोलती थी। कई फिल्में फूलन देवी पर बन चुकी थीं, फ़िल्म “बैंडिड क्वीन” ने भी फूलन की व्यथा कथा समाज के समक्ष रखी है जो बहुत बाद में आई लेकिन वह दौर जब फूलन देवी चंबल के बीहड़ो में जीवन यापन कर रही थीं उनके बारे में जो प्रचारित किया गया वह अलग था जबकि यथार्थ बिल्कुल अलग जो उनके नजदीक जाने या बीहड़ से बाहर आने के बाद दुनिया जान सकी।

फूलन देवी को एक आदर्श नारी चरित्र कहा जा सकता है जिसने पढ़ाई-लिखाई न होने के बावजूद मनुवाद और मनुवादी संस्कृति को न केवल नकारा बल्कि इसे तार-तार कर स्त्री अस्मिता की अलग ही आधारशिला रखी।

मनुस्मृति कहती है कि स्त्री का अपना अलग कोई अस्तित्व नही है। स्त्री और उसमे में भी वर्णवार स्त्री का शोषण बहुत ही वीभत्स है। स्त्री का अपना कोई अस्तित्व नही है मनु विधान में जिस नाते इंतजाम है कि शूद्र स्त्री है तो उसका भोग कोई कर सकता है, वैश्य है तो शूद्र पुरुष छोड़कर, क्षत्रिय है तो शूद्र और वैश्य छोड़कर, ब्राह्मण है तो केवल ब्राह्मण उसका भोग करेगा।

फूलन के साथ भी मनुविधान दुहराया गया और सामूहिक रूप से फूलन की अस्मिता तार-तार की गई लेकिन वाह रे फूलन, आपने इसे संयोग, परम्परा, त्रासदी, सामंती रुआब, मनुवादी विधान, गरीबी का अभिशाप, जातिगत इंतजाम न मानकर खुलेआम विद्रोह कर भारतीय संविधान को तार-तार करने वालो या संवैधानिक इंतजामो को अपना दास बनाके रखने वालों का जबाब ईंट के बदले पत्थर से दिया।

फूलन देवी ने प्रतिकार का जो स्वरूप अख्तियार किया वह सभ्य समाज मे अस्वीकार्य है लेकिन क्या फूलन के साथ जो हुवा वह सभ्य समाज मे स्वीकार्य है? जब सभ्य समाज मे स्वीकार्य नही हैं तो हर क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया की वैज्ञानिक थ्योरी ने काम किया और फूलन ने खुद की अस्मत तार-तार करने वालो को जीवन से तार-तार कर एक नए तरह का इतिहास रच डाला।

एक एकलब्य था जिससे पुरातन कथाओं में अंगूठा ले लेने का दृष्टांत है। एकलब्य को बिन पढ़ाये द्रोण ने गुरु दक्षिणा के नाम पर धनुष चलाने में प्रयुक्त होने वाला अंगूठा कटवा लिया था. एकलब्य भी हंसते हुए अंगूठा दान कर दिया था। इसी परंपरा को हजार वर्ष बाद निबाहने की कुचेष्टा जब बेहमई में हुई तो इस अबला फूलन ने उस वक्त रोते-बिलखते खुद की अस्मत लुट जाने दी लेकिन एकलब्य की तरह इसे स्वीकारा नही बल्कि यह अपमान उसे ज्वाला मुखी बना डाला जिसके फूटे हुए लावों में यह पूरी परम्परा झुलस के रह गयी।

पुरुषवादी और मनुवादी सोच ने फूलन को डकैत, हत्यारा और न जाने क्या-क्या कहा? हम सब फूलन के बारे में पता नही क्या-क्या धारणाएं बना लिए लेकिन फूलन ने सामन्तवाद, मनुवाद को ऐसे झकझोरा कि कई दशक तक फूलन के नाम लेने मात्र से मनुविधान मानने व चलाने वालों के रोएं फूटते रहे।

फूलन देवी, जिन्हें “बैंडिट क्वीन” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास में एक विवादास्पद और प्रभावशाली व्यक्ति थीं। उनका जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनकी जीवन कहानी गरीबी और उत्पीड़न से लेकर बदनामी और अंततः कुछ हद तक सुधारित और राजनीतिक भूमिका तक की उतार-चढ़ाव भरी यात्रा से चिह्नित है। यहां फूलन देवी की संक्षिप्त जीवनी और इतिहास दिया गया है:

प्रारंभिक जीवन और शोषण:
फूलन देवी का जन्म एक निचली जाति के परिवार में हुआ था और वे गरीबी में पली बढ़ी थीं। उनके जीवन में तब अंधकारमय मोड़ आया जब उनकी शादी कम उम्र में एक बड़े आदमी से कर दी गई, फूलन देवी के माता-पिता ने उनकी  शादी पुत्तीलाल नामक एक व्यक्ति से हुई थी, जिसने उसके माता-पिता को 100 भारतीय रुपये (2023 में 400 रुपये के बराबर), एक गाय और एक साइकिल की पेशकश की थी। शादी के बाद उसका बहुत शोषण किया गया और उसके पति ने उसके साथ अमानवीय व्यवहार भी किया, जिसने उनके साथ दुर्व्यवहार किया।

बदला और डाकू जीवन:
1979 में, फूलन देवी उच्च जाति के ठाकुर पुरुषों के एक समूह के साथ संघर्ष में शामिल थीं, जिन्होंने उनके परिवार के खिलाफ बदला लेने के लिए उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था। यह घटना उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। वह डाकुओं के एक गिरोह में शामिल हो गई और अपराध का जीवन शुरू कर दिया। उसका गिरोह डकैती और अपहरण सहित विभिन्न आपराधिक गतिविधियों में शामिल था, जो अक्सर उच्च जाति के व्यक्तियों को निशाना बनाता था।

“बैंडिट क्वीन”:
फूलन देवी अपने कार्यों के लिए कुख्यात हो गईं और मीडिया उन्हें “बैंडिट क्वीन” के नाम से संदर्भित करने लगा। उनकी रॉबिनहुड जैसी छवि तब और निखर गई जब उन्होंने कथित तौर पर चोरी की गई संपत्ति को अपने निचली जाति के समर्थकों में बांट दिया और अपने बलात्कारियों से बदला लेने की कोशिश की।

समर्पण और कारावास:
कई वर्षों तक भागने के बाद 1983 में फूलन देवी ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्होंने 11 साल जेल में बिताए, इस दौरान उनमें महत्वपूर्ण व्यक्तिगत परिवर्तन हुए। आख़िरकार उन्हें 1994 में रिहा कर दिया गया।

राजनीतिक कैरियर:
रिहाई के बाद फूलन देवी राजनीति में आ गईं. वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गईं और 1996 में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए संसद सदस्य के रूप में चुनी गईं। वह उत्पीड़ित और हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों के लिए काम करती रहीं।

हत्या:


25 जुलाई, 2001 को लगभग 13:30 बजे फूलनदेवी पर ठाकुर समाज के 3 युवकों ने 44 अशोक रोड पर फूलन देवी की उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी। उन्हें नौ बार गोली मारी गई, और उनके अंगरक्षक को दो बार गोली मारी गई, जबकि अपराधी एक कार में भाग गए। उसे लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।
शेर सिंह राणा जो फायरिंग में भी शामिल था, जिसने दावा किया कि उसने बेहमई में ठाकुरों के नरसंहार का बदला लेने के लिए उसकी हत्या की थी।

फूलन देवी का जीवन जटिल और विवादास्पद था, और वह भारतीय इतिहास में एक ध्रुवीकरण करने वाली हस्ती बनी हुई हैं। जहां कुछ लोग उन्हें जाति-आधारित भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में देखते हैं, वहीं अन्य लोग उनकी आपराधिक गतिविधियों को अक्षम्य मानते हैं। उनकी जीवनी और इतिहास भारत में हाशिए पर रहने वाले व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों और पीड़ित से डाकू से राजनेता तक की उनकी यात्रा की जटिलताओं को दर्शाता है।




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